"रोहन अपने कमरे के एक कोने में पड़ी पुरानी कुर्सी पे बैठ कर अपने पुरानी डायरी में कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखते जा रहा था और साथ में, पंक्तियाँ गुनगुना भी रहा था । बीच बीच में चाय की चुस्कियाँ भी लिए जा रहा था। “यूँ सुहाने रास्ते में अकेले चले जा रहे हो। मुझे भी ॰॰॰”॰॰॰।" "सुनो!!! ये गीत , कविता , कहानी लिखने से बच्चों के पेट नहीं भरेंगे । ६ महीने हो गए नौकरी छूटे हुए। घर बैठ के बचत के पैसे भी धीरे धीरे उड़नछू हो रहे हैं। नौकरी ढूँढने पे ध्यान लगाओ । यहाँ पैसे बचाने के लिए, कामवाली को भी निकाल दिया । झाड़ू पोछा भी २ महीने से खुद ही कर रही हूँ । और एक तुम हो! जो बैठ के कविता कहानी लिखने में पड़े हुए हो ।" कविता की कर्कश आवाज़ ने रोहन का ध्यान भंग कर दिया। फिर क्या था! रोहन ने भी शब्दों के तीर कविता पर दे मारा। "कितनी मुस्किल से तो २ लाइन कविता की बन पायी थी । अब तुम्हारा सुरु हो गया! अब तो कुछ ना हो पाएगा। मेरी भी अपनी पसंद नापसंद है! मुझे जो अच्छा लगेगा वही तो करूँगा? इतने सारे इंटर्व्यू दे कर आया हूँ अब कहीं से बुलावा आएगा तभी तो जाऊँगा? तब तक त
This blog is about Short Stories / कहानियां एवं लघुकथाएं , poems and motivational thoughts.