" सावन की शाम " " ना दिन है ना रात है। दिन समाप्त होने को है और रात आने को है । दिन और रात के बीच का कुछ समय । जब सूरज बिदायी लेने के लिए तैयार और निशा आने को बेक़रार। सूरज अप नी लालिमा छोड़े जा रहा , निशा अपनी अँधेरा लाना चाह रही और आसमान अपनी हल्की हल्की बारिश की बूँदे बरसाने को बेक़रार । ये सारी प्रकृति का खेल एक साथ आसमान में चल रहा था " रति अपने गाँव के पुराने छत पे बैठ कर इस प्रकृति के अनोखे खेल में समायी जा रही थी। सामने खेत में धान के पौधे अपने बाल्यावस्था को छोड़ने को तैयार और किशोर अवस्था में जाने को बेरकरार थे । ठंडी ठंडी हवा के साथ धान के पौधे भी झूम रहे थे और हवा की लय में बहे जा रहे थे । सब मिल कर एक मधुर संगीत निकाल रहे थे । एक अलग ही संगीत जिसे केवल महसूस किया जा सकता । रति को ऐसा लग रहा था जैसे वह भी कोई परी बन जाए और " इन हरियाली भरे पौधों , ठंडी हवा , आसमान में लालिमा और काले बादल का एक साथ के अनोखे दृश्य " में समा जाए और इनके साथ झूमने लगे , खो जाए । सुबह के अलार्म ने रति को जगाया तब जा के वह अपने