"ना
दिन है ना रात है। दिन समाप्त
होने को है और रात आने को है ।
दिन और रात के बीच का कुछ समय
। जब सूरज बिदायी लेने के लिए
तैयार और निशा आने को बेक़रार।
सूरज अपनी
लालिमा छोड़े जा रहा ,
निशा
अपनी अँधेरा लाना चाह रही और
आसमान अपनी हल्की हल्की बारिश
की बूँदे बरसाने को बेक़रार
। ये सारी प्रकृति का खेल एक
साथ आसमान में चल रहा था"
रति
अपने गाँव के पुराने छत पे बैठ
कर इस प्रकृति के अनोखे खेल
में समायी जा रही थी। सामने
खेत में धान के पौधे अपने
बाल्यावस्था
को छोड़ने को तैयार और किशोर
अवस्था में जाने को बेरकरार
थे।
ठंडी
ठंडी हवा के साथ धान के पौधे
भी झूम रहे थे और हवा की लय में
बहे जा रहे थे । सब मिल कर एक
मधुर संगीत निकाल रहे थे ।
एक अलग ही संगीत जिसे केवल
महसूस किया जा सकता ।
रति
को ऐसा लग रहा था जैसे वह भी
कोई परी बन जाए और "
इन
हरियाली भरे पौधों ,
ठंडी
हवा ,
आसमान
में लालिमा और काले बादल का
एक साथ के अनोखे दृश्य"
में
समा जाए और इनके साथ झूमने
लगे,
खो
जाए ।
सुबह
के अलार्म ने रति को जगाया तब
जा के वह अपने सपनो से बाहर
आयी । फिर आँख खुली तो खिड़की
से बाहर रोड पर दौड़ती भागती
बस ,
कार
और मेट्रो में अपने आप को क़ैद
पाया । लैप्टॉप खोलते ही पूरे
दिन का ऑफ़िस की मीटिंग और काम
का अलर्ट से स्क्रीन भर गया
।
लैप्टॉप
बंद कर ब्लैक कॉफ़ी और ब्रेड
के कुछ टोस्ट तैयार कर मिक्स
फ़्रूट जैम लगाया और खिड़की
के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ कर
फिर बाहर की ज़िंदगी में समाती
चली गयी।
अनायास
ही रति का हाथ फ़्लाइट बुकिंग
के ऐप पर चला गया और शाम की लंदन
से कलकत्ता की फ़्लाइट बुक
कर दिया । वह जल्द से जल्द अपने
गाँव "मुर्शिदाबाद"
चले
जाना चाह रही थी ।
-अरुण
कुमार सिंह
Well written
ReplyDeleteThank you !
DeleteSuperb 👏👏👏
ReplyDeleteThank you..
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