मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?
जब तुम धरती पे आई, घर मे नई रोशनी लाई।
कुछ के चेहरे मायुश थे, पर अम्मा और बाबा खुश थे।
गुड़िया की स्वागत में, घर को सजाया।
अपना कमरा छोटा कर, गुड़िया का कमरा बनाया।
कभी खुद के कपड़े की जगह, गुड़िया के लिए खिलौने लाया।
कभी घोड़ा बन के पीठ पे सजाया, कंधे पर बिठा के मेला घुमाया।
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?
सारे काम छोड़ कर, तुम्हें स्कूल छोड़ के आता।
जो मुझे न मिल पाया,वह सबकुछ देने की कोशिश करता।
तुम्हें आत्मनिर्भर बनाया। दुनिया मे जीने का नियम सिखाता।
आज तुम अपने पैरों पर खड़ी हो भी गयी थी, फिर ये क्या हुआ?
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?
आज तू क्यों न बोल रही, क्यों नहीं शिकायत कर रही।
मैं देर से क्यों आया, तू मुश्किल में थी मैं समझ क्यों न पाया।
अब कैसे मैं बिठाऊँ तुम्हे कंधे पर, तुम तो मेरे तरफ देख भी नहीं रही।
कुछ तो जवाब दो, अब मैं किसको सुबह आवाज दे कर उठाऊंगा।
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी??
जिन हाथों से तुम्हे खाना खिलाया। उन हाथों से तुम्हें आग कैसे दे पाऊंगा?
तुम मुझसे बाद आई, और मुझसे पहले क्यों चली गयी?
अब पूरी जिंदगी की याद, एक छड़ में कैसे भुला पाऊं मैं?
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?
- अरुण सिंह
जब तुम धरती पे आई, घर मे नई रोशनी लाई।
कुछ के चेहरे मायुश थे, पर अम्मा और बाबा खुश थे।
गुड़िया की स्वागत में, घर को सजाया।
अपना कमरा छोटा कर, गुड़िया का कमरा बनाया।
कभी खुद के कपड़े की जगह, गुड़िया के लिए खिलौने लाया।
कभी घोड़ा बन के पीठ पे सजाया, कंधे पर बिठा के मेला घुमाया।
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?
सारे काम छोड़ कर, तुम्हें स्कूल छोड़ के आता।
जो मुझे न मिल पाया,वह सबकुछ देने की कोशिश करता।
तुम्हें आत्मनिर्भर बनाया। दुनिया मे जीने का नियम सिखाता।
आज तुम अपने पैरों पर खड़ी हो भी गयी थी, फिर ये क्या हुआ?
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?
आज तू क्यों न बोल रही, क्यों नहीं शिकायत कर रही।
मैं देर से क्यों आया, तू मुश्किल में थी मैं समझ क्यों न पाया।
अब कैसे मैं बिठाऊँ तुम्हे कंधे पर, तुम तो मेरे तरफ देख भी नहीं रही।
कुछ तो जवाब दो, अब मैं किसको सुबह आवाज दे कर उठाऊंगा।
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी??
जिन हाथों से तुम्हे खाना खिलाया। उन हाथों से तुम्हें आग कैसे दे पाऊंगा?
तुम मुझसे बाद आई, और मुझसे पहले क्यों चली गयी?
अब पूरी जिंदगी की याद, एक छड़ में कैसे भुला पाऊं मैं?
मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?
- अरुण सिंह
Bohot khub 👌👌👌
ReplyDeleteThank you!
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThank you.
DeleteSuper 👍
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