बग़ल के सोफ़े में घुसे अपनी प्यारी पत्नी
सुनैना से कुशल बोलते हुए किचन की तरफ़ चलता गया।
सुनते ही सुनैना भी ख़ुशी में झूमती
हुई बोली
“ हाँ! बिल्कुल, सही कहते हैं, मैं भी यही सोंच रही थी।घर बैठे-बैठे
बिलकुल ही बोर हो गए हैं! टेलिविज़न पर एक ही वेब सिरीज़ ४ बार देख चुकी हूँ। अब
पंचवि बार देखने का मन नहीं है मेरा! कहाँ चले? कोई आस पास की जगह देखते हैं ,१ दिन
का घूमने का हो तो कल सुबह निकल चलते हैं, वही रात में रुक भी जाएँगे।”
कुशल ने
सोचा कि ये तो बस इंतेज़ार ही कर रही थी, मेरे बोलते ही इसने सारा प्लान भी बना
लिया!
बग़ल के कमरे में इनका प्यारा बेटा राहुल, विडीओ गेम खेल रहा था, सुनते ही
बाहर आ गया और वह भी सोफ़े में बैठ गया जहां बाहर जाने का प्लान बन रहा था।
उनकी
बात ध्यान से सुना और दोनो लोगों को हिदायत देते हुए बोला
“बिलकुल नहीं!, कहीं नहीं
जाना है, मेरी छुट्टी हुई है, आप लोगों की नहीं हुई है!, मुझे पूरे हप्ते घर पर ही
रहना है, मैं रोज़ स्कूल जाता हूँ, जब छुट्टी हुई है तब भी बाहर जाऊँगा क्या? कहीं
नहीं जाना है और इसके बारे में बात भी नहीं करनी है।”
ऐसा सुनते ही, कुशल को समझ आ
गया कि ये ऐसा क्यों बोल रहा है। अगर घूमने जाएँगे तो ये विडीओ गेम नहीं खेल पाएगा।
इसीलिए मना कर रहा है। एक हम लोग थे जब छुट्टी होती थी तो वापस घर कहीं शाम को ही
आते थे, दिन भर बाहर खेलते रहते थे। लेकिन उस समय इतना डिजिटल डिवाइस भी नहीं था,
नहीं तो हम भी यही करते जो आज ये सब कर रहे हैं।
लेकिन मौक़े की नज़ाकत देखते हुए
कुशल ने राहुल को कुछ नहीं बोला। बल्कि उसे समझाया कि बेटा! ७ दिन की छुट्टी हुई है
और परसों शनिवार है, तो कहीं घूम आते हैं! हम लोग भी घर पर काम करते - करते थक गए
हैं। थोड़ा हमारा भी मन बदल जाएगा।
इस पर सुनैना का भी साथ मिला और उसने भी हाँ में
हाँ मीलायी।
अब ३ में से २ वोट घूमने के तरफ़ पड़े।
बेचारा राहुल केवल १ वोट ले कर
क्या करे? दोनो की तरफ़ देखने लगा।
जैसे लगा ओह गेम हार गया और अपने कमरे में मुँह
लटकाए चला गया।
- अरुण सिंह
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