चुप रहके बहुत कुछ बोला जा सकता है । जीवन का सबसे बड़ा वार्तालाप चुप रहके होता है।
कोई अपना मित्र या घर का ही अपना सदस्य, ग़ुस्से में बहुत कुछ बोलते हैं।
अगर एक पच्छ समझदारी दिखाए तो, बहुत बड़ा से बड़ा झगड़ा, मारपीट या कोई भी विवाद सुलझाया जा सकता है।
वाक़यी में जो कोई भी ग़ुस्से में होता है, वह उस समय स्वयं नहीं होता है।
उस समय उसके शरीर पर किसी और का वश होता है ।
बस उस तनिक से समय के लिए, अगला आदमी कुछ जवाब ना दे और शांत रह जाए।
तो ग़ुस्सा शांत होते ही उसे समझ में आ जाएगा कि वह कितनी गलती कर रहा था।
और दूसरा आदमी चूप रहके भी सब कुछ बोल जाएगा।
- अरुण सिंघ
“पूरे हफ़्ते की स्कूल की छुट्टी हुई थी, ४ दिन घर बैठे - बैठे बीत गए, इससे अच्छा कहीं घूम ही आते है? क्या कहती हो?” बग़ल के सोफ़े में घुसे अपनी प्यारी पत्नी सुनैना से कुशल बोलते हुए किचन की तरफ़ चलता गया। सुनते ही सुनैना भी ख़ुशी में झूमती हुई बोली “ हाँ! बिल्कुल, सही कहते हैं, मैं भी यही सोंच रही थी।घर बैठे-बैठे बिलकुल ही बोर हो गए हैं! टेलिविज़न पर एक ही वेब सिरीज़ ४ बार देख चुकी हूँ। अब पंचवि बार देखने का मन नहीं है मेरा! कहाँ चले? कोई आस पास की जगह देखते हैं ,१ दिन का घूमने का हो तो कल सुबह निकल चलते हैं, वही रात में रुक भी जाएँगे।” कुशल ने सोचा कि ये तो बस इंतेज़ार ही कर रही थी, मेरे बोलते ही इसने सारा प्लान भी बना लिया! बग़ल के कमरे में इनका प्यारा बेटा राहुल, विडीओ गेम खेल रहा था, सुनते ही बाहर आ गया और वह भी सोफ़े में बैठ गया जहां बाहर जाने का प्लान बन रहा था। उनकी बात ध्यान से सुना और दोनो लोगों को हिदायत देते हुए बोला “बिलकुल नहीं!, कहीं नहीं जाना है, मेरी छुट्टी हुई है, आप लोगों की नहीं हुई है!, मुझे पूरे हप्ते घर पर ही रहना है, मैं रोज़ स्कूल जाता हूँ, जब छुट्टी हुई ह
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