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Showing posts from 2020

असली ज़रूरत मंद

....................................................................................................... "भाई साहेब ! ओ भाई साहेब ! सुनिए तो! बच्चा कई दिनों से भूखा है । कुछ मदद कर दीजिए ।" आवाज़ अनसुनी कर रोहित चला जा रहा था । तभी उसके मन में पता नहीं क्या आया कि पीछे मुड़ के उस औरत के पास आ गया जो उसे आवाज़ लगा रही थी । यही कोई लगभग 45 वर्ष की आयु की औरत थी। रोहित को पास आते देख, महिला दयनीय चेहरा बना कर गिड़गिड़ाते हुए बोलने लगी। "साहेब! पैसे नहीं तो राशन दिला दीजिए या 5 किलो आटा ही दिला दीजिए, बच्चे भूखे हैं " । "मैं आपको इसी जगह पे सालों से देखता हूँ। आपकी सेहत भी ठीक ठाक दिखती है, फिर आप ये रोज़ इतना भीख माँग कर करती क्या हैं ? मैंने भी बहुत बार आपको मदद की है । मुझे याद है।” रोहित उस औरत को प्यार से समझाने के लहजे से बात करने लगा । "अरे नहीं साहेब मेरा बच्चा भूखा है, पैसे नहीं तो खाने का सामान दिला दीजिए। ” औरत एक बात की रट लगाए पड़ी थी। “अच्छा तो पहले आप लोग पैसे माँगते थे, और लोग ज़रा समझदार हो गए हैं तो आप लोग बोलते हो कि 5 किलो का आटा दिला दीजि

क़िस्सा लॉकडाउन का

"आयिए कौशिक भाई साहेब !!! क्या चाहिए?” किराने की दुकान वाले ने प्यार से पूछा । कुछ ख़ास नहीं भैया, बस कुछ राशन का सामान चाहिए। ये लीजिए सामान की लिस्ट है। सुंदर!! ये कौशिक साहेब का सामान निकाल दो बेटा !!! सुंदर जो किराने की दुकान पर काम करता था झट से सामान की लिस्ट कौशिक के हाथों से ले लीया। और सरसरी निगाहों से लिस्ट को पढ़ता गया। भैया आप अपना झोला तो लाए होंगे ना ? आज कल ये प्लास्टिक का बैग बंद हो गया है !!! नया नियम आया है कि अपने झोले में ही सामान ले जाएँ। और अब कोरोना बीमारी भी तो धीरे धीरे फैल रही है!!! कौशिक मन ही मन हंसते हुए बोला "हाँ भई लाया हूँ झोला, लो इसमें सामान निकाल दो”। फिर सुंदर सामान निकाल कर झोले में रखता गया । दुकान मालिक ने कौशिक से ऐसे ही मन हल्का करने के लिए बोले "ये क़ोरोना वाइरस तो अब फैलता ही जा रहा है कौशिक भाई साहेब । सबको बाहर निकलने पर मास्क पहनें रहना चाहिए और एक दूसरे से दूरी बना के रखना चाहिए। बहुत देशों में तो कर्फ्यू लग गया है, अब अपने देश में देखिए क्या होता है ।" हाँ ये तो है भाई साहेब! "कौशिक भी उनके हाँ में हाँ मिला दिया ”

गरीब का कर्फ्यू

“अरे साहेब!!! इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हैं?” सोसायटी के गार्ड की आवाज़ ने रोहित के तेज़ी से बढ़ते पैरों में ब्रेक लगाया। “कुछ नहीं भैया! कल से पूरे देश में  कर्फ्यू  लगा है ना! तो कुछ खाने का समान लाने यहीं गेट के पास वाले किराना की दुकान तक जा रहा हूँ।” रोहित जवाब देते हुए आगे बढ़ने लगा। तब तक गार्ड की आवाज़ ने फिर से रोक लिया। “हाँ साहेब सही कह रहे हैं, जो ज़रूरी सामान चाहिए लेते आयिए। पता नहीं कहाँ से ये महामारी आ गयी! मैंने तो अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसी बीमारी ना देखी! जिसका कोई दवा ही नहीं है। बचना ही दवा है साहेब! ”   फिर रोहित भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा “हाँ ये तो है भैया!, आप लोग भी बचाव कीजिए ”।   “अरे साहेब अब हम कहाँ से बचेंगे! नौकरी तो करनी है ना!!! नहीं तो खाएँगे क्या? पता नहीं मेरी घरवाली ने कुछ खाने का सामान ख़रीदा भी है या नहीं! उसको तो पता भी नहीं होगा, घर पर कोई टेलिविज़न भी तो नहीं है कि उसे पता चले!   मोबाइल भी नहीं है कि फ़ोन कर के बता सकूँ!   पिछले महीने सोंचा था कि एक फ़ोन ख़रीद दूँ लेकिन   मेरी बेटी के छोटे लड़के के लिए कपड़े ख़रीद

मन की आज़ादी

"रोहन अपने कमरे के एक कोने में पड़ी पुरानी कुर्सी पे बैठ कर अपने पुरानी डायरी में कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखते जा रहा  था और साथ में, पंक्तियाँ गुनगुना भी रहा था । बीच बीच में चाय की चुस्कियाँ भी लिए जा रहा था। “यूँ सुहाने रास्ते में  अकेले चले जा रहे हो। मुझे भी ॰॰॰”॰॰॰।"  "सुनो!!! ये गीत , कविता , कहानी लिखने से बच्चों के पेट नहीं भरेंगे । ६ महीने हो गए नौकरी छूटे हुए। घर बैठ के बचत के पैसे भी धीरे धीरे उड़नछू हो रहे हैं। नौकरी ढूँढने पे ध्यान लगाओ । यहाँ पैसे बचाने के लिए, कामवाली को भी निकाल दिया । झाड़ू पोछा भी २ महीने से खुद ही कर रही हूँ । और एक तुम हो! जो बैठ के कविता कहानी लिखने में पड़े हुए हो ।" कविता की कर्कश आवाज़ ने रोहन का ध्यान भंग कर दिया। फिर क्या था! रोहन ने भी शब्दों के तीर कविता पर दे मारा। "कितनी मुस्किल से तो २ लाइन कविता की बन पायी थी । अब तुम्हारा सुरु हो गया! अब तो कुछ ना हो पाएगा। मेरी भी अपनी पसंद नापसंद है! मुझे जो अच्छा लगेगा वही तो करूँगा? इतने सारे इंटर्व्यू दे कर आया हूँ अब कहीं से बुलावा आएगा तभी तो जाऊँगा? तब तक त