***बारिश की बूँद ***
आसमान काले बादलों से घिर गया । जेठ की जलाने वाले सूरज की गर्मी से थोड़ी राहत मिली ।
खेत जो एक-एक बूँद पानी को तरस गये थे , शायद उनको उम्मीद लगी की अब उनकी प्यास बुझेगी ।
सुर्ख़ पड़ी ज़मीन अब पानी के एक बूँद को अपने अंदर समा लेने के लिए अपने आप को तैयार कर लिए।
बगीचे के सारे पेड़ जलती हुई धूप से अपने पत्तियों को गिरा चुके थे , अब वह भी आसमान की तरफ़ आशा भरी आस में देख रहे हैं । उनकी भी अब उम्मीद है कि महीनों की प्यास बुझ जाएगी ।
जैसे ही ठंडी हवा काले बादलों के झुंड को ले कर घूमने लगी, चिड़ियों का झुंड जो जलती धूप से बचने के लिए छिपे थे , बाहर निकल कर चहचहाने लगे ।
उन्हें भी अब खुले आसमान में जी भर के भीगने और मन भर प्यास बुझाने की उम्मीद जग गई ।
फिर काले बादल, अपने अंदर समाये अनंत पानी के एक एक बूँद को छोड़ना शुरु किए ।
महीनों से प्यासे खेत जो पानी की आस में सुख कर सख़्त हो गये थे , पानी की बूँद पड़ते ही जीवंत होने लगे ।
सारे सूखे पेड़ , प्यासी चिड़ियों का झुंड , सब अपनी प्यास बुझाने लगे ।
- अरुण सिंह
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