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गरीब का कर्फ्यू

“अरे साहेब!!! इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हैं?” सोसायटी के गार्ड की आवाज़ ने रोहित के तेज़ी से बढ़ते पैरों में ब्रेक लगाया। “कुछ नहीं भैया! कल से पूरे देश में  कर्फ्यू  लगा है ना! तो कुछ खाने का समान लाने यहीं गेट के पास वाले किराना की दुकान तक जा रहा हूँ।” रोहित जवाब देते हुए आगे बढ़ने लगा। तब तक गार्ड की आवाज़ ने फिर से रोक लिया। “हाँ साहेब सही कह रहे हैं, जो ज़रूरी सामान चाहिए लेते आयिए। पता नहीं कहाँ से ये महामारी आ गयी! मैंने तो अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसी बीमारी ना देखी! जिसका कोई दवा ही नहीं है। बचना ही दवा है साहेब! ”   फिर रोहित भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा “हाँ ये तो है भैया!, आप लोग भी बचाव कीजिए ”।   “अरे साहेब अब हम कहाँ से बचेंगे! नौकरी तो करनी है ना!!! नहीं तो खाएँगे क्या? पता नहीं मेरी घरवाली ने कुछ खाने का सामान ख़रीदा भी है या नहीं! उसको तो पता भी नहीं होगा, घर पर कोई टेलिविज़न भी तो नहीं है कि उसे पता चले!   मोबाइल भी नहीं है कि फ़ोन कर के बता सकूँ!   पिछले महीने सोंचा था कि एक फ़ोन ख़रीद दूँ लेकिन   मेरी बेटी के छोटे लड़के के लिए कपड़े ख़रीद

मन की आज़ादी

"रोहन अपने कमरे के एक कोने में पड़ी पुरानी कुर्सी पे बैठ कर अपने पुरानी डायरी में कविता की कुछ पंक्तियाँ लिखते जा रहा  था और साथ में, पंक्तियाँ गुनगुना भी रहा था । बीच बीच में चाय की चुस्कियाँ भी लिए जा रहा था। “यूँ सुहाने रास्ते में  अकेले चले जा रहे हो। मुझे भी ॰॰॰”॰॰॰।"  "सुनो!!! ये गीत , कविता , कहानी लिखने से बच्चों के पेट नहीं भरेंगे । ६ महीने हो गए नौकरी छूटे हुए। घर बैठ के बचत के पैसे भी धीरे धीरे उड़नछू हो रहे हैं। नौकरी ढूँढने पे ध्यान लगाओ । यहाँ पैसे बचाने के लिए, कामवाली को भी निकाल दिया । झाड़ू पोछा भी २ महीने से खुद ही कर रही हूँ । और एक तुम हो! जो बैठ के कविता कहानी लिखने में पड़े हुए हो ।" कविता की कर्कश आवाज़ ने रोहन का ध्यान भंग कर दिया। फिर क्या था! रोहन ने भी शब्दों के तीर कविता पर दे मारा। "कितनी मुस्किल से तो २ लाइन कविता की बन पायी थी । अब तुम्हारा सुरु हो गया! अब तो कुछ ना हो पाएगा। मेरी भी अपनी पसंद नापसंद है! मुझे जो अच्छा लगेगा वही तो करूँगा? इतने सारे इंटर्व्यू दे कर आया हूँ अब कहीं से बुलावा आएगा तभी तो जाऊँगा? तब तक त

मेरी प्यारी गुड़िया

मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी? जब तुम धरती पे आई, घर मे नई रोशनी लाई। कुछ के चेहरे मायुश थे, पर अम्मा और बाबा खुश थे। गुड़िया की स्वागत में, घर को सजाया। अपना कमरा छोटा कर, गुड़िया का कमरा बनाया। कभी खुद के कपड़े की जगह, गुड़िया के लिए खिलौने लाया। कभी घोड़ा बन के पीठ पे सजाया, कंधे पर बिठा के मेला घुमाया। मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी? सारे काम छोड़ कर, तुम्हें स्कूल छोड़ के आता। जो मुझे न मिल पाया,वह सबकुछ देने की कोशिश करता। तुम्हें आत्मनिर्भर बनाया। दुनिया मे जीने का नियम सिखाता। आज तुम अपने पैरों पर खड़ी हो भी गयी थी, फिर ये क्या हुआ? मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी? आज तू क्यों न बोल रही, क्यों नहीं शिकायत कर रही। मैं देर से क्यों आया, तू मुश्किल में थी मैं समझ क्यों न पाया। अब कैसे मैं बिठाऊँ तुम्हे कंधे पर, तुम तो मेरे तरफ देख भी नहीं रही। कुछ तो जवाब दो, अब मैं किसको सुबह आवाज दे कर उठाऊंगा। मेरी प्यारी गुड़िया! आज तू क्यों मुझसे रूठ गयी?? जिन हाथों से तुम्हे खाना खिलाया। उन हाथों से तुम्हें आग कैसे दे पाऊंगा? तुम म

सड़क के श्वान की ज़िंदगी | Life of Street Dog

आखिर वो दिन आ ही गया!!! रजिया ने 6 बच्चों को जन्म दिया। सड़क के किनारे झाड़ियों में लेट के अपने बच्चों को दूध पिलाते हुए अनायास ही पिछले कुछ महीनों का दृश्य उसके आंखों के सामने चलचित्र की तरह चलने लगे। जब वह 6 बच्चों को अपने गर्भ में लिए इस सड़क से उस सड़क घूमती रहती थी। कभी किसी घर के सामने पड़े कूड़े में मुँह मार के कुछ खाने के लिए ढूढ़ ही लेती थी। फिर कभी घर के रखवाले की नजर पड़ी तो डंडो की मार भी खानी पड़ी। पूरे कालोनी में कोई भी देखता तो उसे मारने को दौड़ाता। फिर किसी तरह अपनी और गर्भ में पल रहे 6 बच्चों को लेकर छुपती छुपाती भाग जाती। रात में कहीं भी सड़क के कोने में जगह मिले वहीं सो जाती। लेकिन कभी भी गहरी नींद में नहीं सो पाती। उसको डर लगता कि कहीं कोई उसको डंडे या पत्थर से उसके पेट पे नां मार दे। आखिर उसे अपने बच्चों को भी बचाना था। जो की अभी इस दुनिया में आये ही नहीं। फिर सामने एक लड़का अपने बिलायती कुत्ते को सैर कराते हुए सामने सड़क पे दिखा, तो अचानक उसका ध्यान भंग हुआ। उसके बच्चे भी दूध पीना छोड़, कूदते हुए उस बिलायती प्यारे से कुत्ते के आस पास जा के लालच की नजरों में उसके साथ खे

सामाजिक दबाव | Social Pressure

“ अंकल जी आप बग़ल वाले ख़ाली बेंच पर बैठ जाइए , जब आप का नम्बर आएगा तो मैं बुलाऊँगा। आप बहुत थके हुए लग रहे हैं !” बैंक के लोन पास करने वाले कर्मचारी ने 58 साल के गुप्ता जी को आदर पूर्वक बोलते हुए दूसरे कस्टमर का लोन आवेदन चेक करने में मगन हो गए। गुप्ता जी भी हाथ में फ़ाइल ले कर खाली पड़ी बेंच पर बैठ गए और अपने नम्बर का इंतज़ार करने लगे। “ अरे ! गुप्ता ! यहाँ कैसे ? क्या हुआ ? क्या काम है ?” आवाज़ सुनकर गुप्ता जी भी दूसरे तरफ़ मुड़े , तो सामने देखा कि उनके पुराने मित्र नरेश जो बैंक में कर्मचारी थे उनके तरफ़ आ रहे थे ।   अरे ! तुम ! इसी बैंक में काम करते हो क्या !! “ हाँ अभी एक महीना हुआ बरेली से लखनऊ ट्रान्स्फ़र हुआ है। ”   नरेश भी नज़दीक आते हुए गुप्ता जी को गले लगाते हुए बग़ल में बैठ गए और हाल चाल पूछने लगे। यार गुप्ता तुम्हारे बेटे का एंजिनीरिंग की पढ़ायी तो समाप्त हो गयी होगी इस साल ! बहुत ही होनहार लड़का है तुम्

तब जा के बना ये जय भारत

जब एक देश का एक ही नियम, एक मुल्क का शरहद एक। जब एक धागे में सब बध जाए, तब जा के बना ये जय भारत। उत्तर से जब दक्षिण मिला, मिला पूरब से पश्चिम । कश्मीर से मिली जब कन्याकुमारी, तब जा के बना ये जय भारत। कुछ हमने सींचा, कुछ तुमने सींचा। सब मिलके सींचे, तब जा के बना ये जय भारत। कुछ हरा मिला, कुछ केशरिया मिला। जीवन का चक्र जब जा के मिला, तब जा के बना ये जय भारत । गोरे काले का भेद भुला कर, ऊंच नीच का द्वेष मिटा कर। एक साथ जब सब मिल जाते, तब जा के बना ये जय भारत। जब तुम बोले मैं समझा, जब मैं बोला तुम समझे। जब दोनों एक श्वर में बोले, तब जा के बना ये जय भारत। - अरुण सिंह

तुम भी होते तो अच्छा होता / It would have been nice if you were too

तुम भी होते तो अच्छा होता । ये बारिश का मौसम । ये ठंडी हवा , जो मुझे छू के चली जाती है । आसमान में काली घटा । तुम भी होते तो अच्छा होता । मेरी थोड़ी सी आहट से कोयल का फड़फड़ा के उड़ जाना । घर की खिड़की से बारिश के बहते पानी को देखना । काग़ज़ की कस्ती बना के बहाना । तुम भी होते तो अच्छा होता । छोटी सी झील में हँसो का तैरना । छोटे छोटे कमल के फूलों को खिलते देखना । छोटे से कंकड़ को झील में तैराने की कोशिश करना । तुम भी होते तो अच्छा होता । ऊँचे पहाड़ी पर बैठ कर पूरे शहर को देखना । अपनी ही आवाज़ को घाटी से टकराकर सुनना । मस्ती में झूमते बादलों को छूने की कोशिश करना । तुम भी होते तो अच्छा होता । तुम भी होते तो अच्छा होता । - अरुण कुमार सिंह