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पारदर्शी दीवार

"धीमी धीमी बारिश हो रही थी। मैं कमरे में खिड़की के पास बैठ कर चाय पीते हुए बारिश और ठंडी हवा का आनंद ले रहा था।" बहुत देर से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। फिर खिड़की पर लगे पारदर्शी शिशे के थोड़ा और नजदीक गया। बाहर बारिश की बूंदे साफ दिखाई दे रहीं थीं। अचानक शीशे के उस पार एक छोटी सी छिपकली की बच्ची पर नज़र पड़ी। वह बार बार शीशे से टकरा रही थी। वह बाहर बारिश से बचने के लिए अंदर आना चाह रही थी! लेकिन अंदर नही आ पा रही थी। फिर थोड़ा पीछे जा कर दौड़ कर फिर शीशे पर अपना मुँह दे मारा!!..अंदर आने की कोशिश बहुत देर से कर रही थी। जिसकी वजह से उसका मुँह चोटिल हो गया था। मुझे ये समझने में देर न लगी कि वह ऐसे क्यों शीशे पर हर बार  टकरा रही थी!... शायद उसको पारदर्शी शीशे से लग रहा था कि रास्ते में कुछ रुकावट नहीं है और वह आसानी से कमरे के अंदर आ सकती है। लेकिन वह शीशे की दीवार को समझ नहीं पा रही थी। फिर कुछ देर बाद जब अंदर आने में सफलता नहीं मिली और चोटिल भी हो गयी तो थक हार कर खिड़की के तरफ देखने लगी । शायद उसे पता चल गया कि जो दिख रहा है वह है नहीं। कुछ तो रास्ते मे रुकावट है। जिस

वृंदावन के बंदर

लगभग 2:30 घंटे की ड्राइविंग कर के गाज़ियाबाद से वृंदावन पहुंचते ही सबसे बड़ी समस्या "पार्किंग" ढूढ़ने में सफलता मिली। बाँके बिहारी जी के मंदिर के पास ही पार्किंग की जगह मिल गयी । पार्किंग में कार खड़ी करके बाहर निकलने के लिए जैसे ही कार का दरवाजा खोला, वैसे ही तेज आवाज ने सावधान किया !! "भैयाजी जी आप लोग अपना और बेटे का चश्मा कार में ही रख दीजिए" क्यों भाई ? कौतुहल बस पूछ बैठा! ... अभी यह सवाल पूछ ही रहा था तब तक मेरे बेटे के तरफ अचानक एक छोटा सा.. नटखट सा ब ंदर दौड़ा। मैने झट से बेटे को संभाला और बंदर वहां से चला गया। तब समझ मे आया कि बंदर बेटे का चश्मा झपटने आया था। फिर मैंने यह सबकुछ समझने में एक पल की भी देरी नही की और अपना और अपने बेटे का चश्मा झट से उतार कर कार में रख दिया। फिर हम लोग सावधानी बरतते हुए मंदिर के तरफ चलने लगे। मेरे बेटे ने शिकायत के लहजे में रास्ते भर पूछता रहा " पापा!!बंदर मेरा चश्मा क्यों छीन रहा था??.." मेरे पास कोई जबाब नहीं था! फिर हम बाँके बिहारी जी के दर्शन करके वापस आने लगे। मेरे बेटे को शायद दर्शन भी ठीक से नही हो पाय

दिखावे की ज़िन्दगी

हैलो!! ..हैलो.."पापा आवाज सुनाई नहीं दे रही है!! मैं कल फ़ोन करूँगा। मैं अभी ऑफिस की एक पार्टी में हूँ।" फिर फ़ोन कट गया।... शर्मा जी ने बहुत मेहनत कर के कुछ पैसे बचाये थे। अपने एकलौते बेटे को विदेश लंदन पढ़ने के लिए भेजा। उसके लिए बहुत सारा पैसा लोन लिया । बेटे को लंदन पढ़ाने से शर्मा जी की अपनी कॉलोनी में इज्जत बढ़ गयी। बस क्या था अब बेटे को लंदन में रहने के लिए भी कुछ लोन लेना पड़ा। अब एक पैर आगे बढ़ा दिया था तो पीछे भी नहीं आ सकते। आखिर समाज मे इज्ज़त ही क्या रह जाएगी।अब सरकारी नौकरी से घर चल जाये वही बहुत है। ये सोच कर रह जाते कि बेटा पढ़ के नौकरी करेगा तो लोन चुका देगा। उधर बेटे ने भी नौकरी लगते ही घर खरीद लिया। उसको भी समय के साथ चलना था और उसका अपना भी एक समाज था। आखिर उसके साथ काम करने वाले क्या सोचेंगे कि अभी भी किराये के कमरे में रहता है।उसके लिए उसे भी लोन लेना पड़ा। अब बेटा भी क्या करें!!, अपना लोन चुकाए अथवा पापा का!!... रचनाकार: अरुण कुमार सिंह

नई सुबह

रीमा! सुन रही हो? "देखो कौन आया है दरवाजे पर?" दरवाजा खोल देना! रीमा अपने 12वीं बोर्ड परीक्षा कि पढ़ाई मे ध्यान लगायी थी। पिता जी के तेज अवाज से ध्यान भंग हो गया। "जी पिता जी" बोल के दरवाजा खोला। ..... रचना दीदी!!! और मौसी!!! मारे खुशी से उछलने लगी। पिता जी और मां दोनो दरवाजे पर आ गए ..... और खुशी से सब घर के अन्दर चले गए। फिर मै मन ही मन यही सोंच रही थी.... कि रचना दीदी मुझसे 3 साल ही तो बड़ी हैं! लेकिन पिछले साल उनकी शादी हुई और आज कितना गंभीर हो गई हैं!! .. .चेहरे से उम्र का तेज गायब हो गया था। उनका मन बहुत था पढ़ाई करने का ... लेकिन हमारे 10 गांव के बीच केवल एक ही स्कूल है। ...और वह भी केवल 12वीं तक है। आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ता था। और यह अधिकार लड़कियों को नहीं मिलता था। पिता जी की आवाज से ध्यान भंग हुआ। ... रीमा!!... देखो! "रचना" कितना समझदार हो गयी है!!! अब तुम भी 12वीं परीक्षा दे कर कुछ घर के काम सिख लो ....और कुछ कढ़ाई बुनाई सिख लो !!... अखिर शादी के बाद यहि काम आएगा!! ..नहीं पिता जी मुझे बीएससी की पढ़ाई करनी है, मुझे अभी शादी नह

पुराना चश्मा

ऑफिस का काम समाप्त करके जल्दी से बस स्टैंड पर आया ताकि कोई बस मिल जाए और समय से घर पहुँच जाऊं। रात के 9 बज चुके थे। अंधेरी रात होने की वजह से कुछ साफ दिखाई नही दे रहा था। और बारिश भी ऐसी हो रही थी मानो कभी रुकेगी ही नहीं। बस का इंतजार करते करते आधा घंटा हो गया होगा। मन मे यही सोंच रहा था कि इंडिया मे कब वह दिन आएगा जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट सही हो जाएँगे? यह ख्याल इसलिए आया कि ऑफिस के काम की वजह से पिछले साल जापान गया था । वहाँ पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुस्किल में कभी एक सेकंड की भी देरी से आती हो। अभी यही सब सोंच ही रहा था कि सामने अचानक एक बूढ़े दम्पति एक लकड़ी के छड़ी को पकड़े, एक दूसरे का हाथ पकड़े चले आ रहे थे। उनकी उम्र यही कोई 80 साल के आस पास की होगी। अंधेरे और बारिश की वजह से उन्हे कुछ साफ दिखाई नही दे रहा था। बहुत मुस्किल से छड़ी के सहारे रास्ते पर गड्ढे ढूढ़ते चल रहे थे। बस स्टैंड के पास आते ही गड्ढे नापने मे कुछ ग़लती हुई और दोनो बूढ़े दम्पति सीधे आ के मेरे उपर गिर गये। उन्हे सम्भालते हुए अनायास ही पूछ बैठा "अंकल जी, कहाँ जाना है।" लड़खड़ाती हुई आवाज़ मे बोले &quo

About Me

Arun Kumar Singh was born and raised in Deoria, UP, India. He is an Author by hobby. He is graduated as Bachelor of Engineering (B.E). Written multiple short stories. His writing has been praised by readers and other respected Author's. Short stories published on multiple platforms. He also learning flute and interested in traveling. Buy Best Flute