"धीमी धीमी बारिश हो रही थी। मैं कमरे में खिड़की के पास बैठ कर चाय पीते हुए बारिश और ठंडी हवा का आनंद ले रहा था।" बहुत देर से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। फिर खिड़की पर लगे पारदर्शी शिशे के थोड़ा और नजदीक गया। बाहर बारिश की बूंदे साफ दिखाई दे रहीं थीं। अचानक शीशे के उस पार एक छोटी सी छिपकली की बच्ची पर नज़र पड़ी। वह बार बार शीशे से टकरा रही थी। वह बाहर बारिश से बचने के लिए अंदर आना चाह रही थी! लेकिन अंदर नही आ पा रही थी। फिर थोड़ा पीछे जा कर दौड़ कर फिर शीशे पर अपना मुँह दे मारा!!..अंदर आने की कोशिश बहुत देर से कर रही थी। जिसकी वजह से उसका मुँह चोटिल हो गया था। मुझे ये समझने में देर न लगी कि वह ऐसे क्यों शीशे पर हर बार टकरा रही थी!... शायद उसको पारदर्शी शीशे से लग रहा था कि रास्ते में कुछ रुकावट नहीं है और वह आसानी से कमरे के अंदर आ सकती है। लेकिन वह शीशे की दीवार को समझ नहीं पा रही थी। फिर कुछ देर बाद जब अंदर आने में सफलता नहीं मिली और चोटिल भी हो गयी तो थक हार कर खिड़की के तरफ देखने लगी । शायद उसे पता चल गया कि जो दिख रहा है वह है नहीं। कुछ तो रास्ते मे रुकावट है। जिस
This blog is about Short Stories / कहानियां एवं लघुकथाएं , poems and motivational thoughts.