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दिखावे की ज़िन्दगी


हैलो!! ..हैलो.."पापा आवाज सुनाई नहीं दे रही है!! मैं कल फ़ोन करूँगा। मैं अभी ऑफिस की एक पार्टी में हूँ।"
फिर फ़ोन कट गया।...

शर्मा जी ने बहुत मेहनत कर के कुछ पैसे बचाये थे। अपने एकलौते बेटे को विदेश लंदन पढ़ने के लिए भेजा। उसके लिए बहुत सारा पैसा लोन लिया ।

बेटे को लंदन पढ़ाने से शर्मा जी की अपनी कॉलोनी में इज्जत बढ़ गयी। बस क्या था अब बेटे को लंदन में रहने के लिए भी कुछ लोन लेना पड़ा। अब एक पैर आगे बढ़ा दिया था तो पीछे भी नहीं आ सकते। आखिर समाज मे इज्ज़त ही क्या रह जाएगी।अब सरकारी नौकरी से घर चल जाये वही बहुत है। ये सोच कर रह जाते कि बेटा पढ़ के नौकरी करेगा तो लोन चुका देगा।

उधर बेटे ने भी नौकरी लगते ही घर खरीद लिया। उसको भी समय के साथ चलना था और उसका अपना भी एक समाज था। आखिर उसके साथ काम करने वाले क्या सोचेंगे कि अभी भी किराये के कमरे में रहता है।उसके लिए उसे भी लोन लेना पड़ा।

अब बेटा भी क्या करें!!, अपना लोन चुकाए अथवा पापा का!!...

रचनाकार: अरुण कुमार सिंह

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