रीमा! सुन रही हो? "देखो कौन आया है दरवाजे पर?" दरवाजा खोल देना! रीमा अपने 12वीं बोर्ड परीक्षा कि पढ़ाई मे ध्यान लगायी थी। पिता जी के तेज अवाज से ध्यान भंग हो गया। "जी पिता जी" बोल के दरवाजा खोला। .....
रचना दीदी!!! और मौसी!!! मारे खुशी से उछलने लगी। पिता जी और मां दोनो दरवाजे पर आ गए ..... और खुशी से सब घर के अन्दर चले गए। फिर मै मन ही मन यही सोंच रही थी.... कि रचना दीदी मुझसे 3 साल ही तो बड़ी हैं! लेकिन पिछले साल उनकी शादी हुई और आज कितना गंभीर हो गई हैं!! ...चेहरे से उम्र का तेज गायब हो गया था। उनका मन बहुत था पढ़ाई करने का ... लेकिन हमारे 10 गांव के बीच केवल एक ही स्कूल है। ...और वह भी केवल 12वीं तक है। आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ता था। और यह अधिकार लड़कियों को नहीं मिलता था। पिता जी की आवाज से ध्यान भंग हुआ। ...
रीमा!!... देखो! "रचना" कितना समझदार हो गयी है!!! अब तुम भी 12वीं परीक्षा दे कर कुछ घर के काम सिख लो ....और कुछ कढ़ाई बुनाई सिख लो !!... अखिर शादी के बाद यहि काम आएगा!! ..नहीं पिता जी मुझे बीएससी की पढ़ाई करनी है, मुझे अभी शादी नही करनी है!!चिल्लाते हुये वहां से चली गयी ....और अपने कमरे में आकर खूब रोई। अब पता नहीं पिता जी आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेजेंगे या नहीं? ...फिर मैने दृढ़ निश्चय किया कि अंत तक हार नही मानूँगी।।
एक महीने तक परीक्षा चला। खूब मेहनत किया था मैंने!! ताकि अच्छे स्कूल में दाखिला मिल जाये। फिर लग रहा था... पता नहीं पिता जी •••••???••• •••••••
आखिरी सब्जेक्ट का परीक्षा दे कर उदास मन से छत पर बैठी थी !! तभी पिता जी की आवाज आई !! रीमा!!!•• रीमा, बीएससी का फॉर्म भारी हो कि नहीं ?? अगर नही भरी हो तो मैं कल शहर जा रहा हूँ !! कहो तो फॉर्म लेता आऊं? ...
मेरा तो खुशी का ठीकाना नहीं रहा।।।। यह मेरे लिए नई सुबह थी।
रचनाकार : अरुण कुमार सिंह
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