Skip to main content

पारदर्शी दीवार


"धीमी धीमी बारिश हो रही थी। मैं कमरे में खिड़की के पास बैठ कर चाय पीते हुए बारिश और ठंडी हवा का आनंद ले रहा था।"
बहुत देर से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। फिर खिड़की पर लगे पारदर्शी शिशे के थोड़ा और नजदीक गया। बाहर बारिश की बूंदे साफ दिखाई दे रहीं थीं।
अचानक शीशे के उस पार एक छोटी सी छिपकली की बच्ची पर नज़र पड़ी। वह बार बार शीशे से टकरा रही थी। वह बाहर बारिश से बचने के लिए अंदर आना चाह रही थी! लेकिन अंदर नही आ पा रही थी।
फिर थोड़ा पीछे जा कर दौड़ कर फिर शीशे पर अपना मुँह दे मारा!!..अंदर आने की कोशिश बहुत देर से कर रही थी। जिसकी वजह से उसका मुँह चोटिल हो गया था। मुझे ये समझने में देर न लगी कि वह ऐसे क्यों शीशे पर हर बार  टकरा रही थी!...
शायद उसको पारदर्शी शीशे से लग रहा था कि रास्ते में कुछ रुकावट नहीं है और वह आसानी से कमरे के अंदर आ सकती है। लेकिन वह शीशे की दीवार को समझ नहीं पा रही थी।
फिर कुछ देर बाद जब अंदर आने में सफलता नहीं मिली और चोटिल भी हो गयी तो थक हार कर खिड़की के तरफ देखने लगी । शायद उसे पता चल गया कि जो दिख रहा है वह है नहीं। कुछ तो रास्ते मे रुकावट है। जिसको वह छोटी सी छिपकली की बच्ची समझ नहीं पा रही थी।
अब उसे बारिश से तो बचना ही था!!!! शायद यही सोच रही थी कि उसमें इतनी ताकत होती जो इस दीवार को तोड़ देती!!!..
फिर मायूश होकर दूसरा रास्ता ढूढ़ने चली गयी और दरवाजे के बीच मे.. एक छोटे से छेद से अंदर आ गयी। ..शांत सी हो कर वहीं लेट गयी। अंदर आने में और बारिश से बच जाने मे एक शुकून सा उसके चेहरे पर था। आखिर उसने उस पारदर्शी दीवार को पार करने का रास्ता ढूढ लिया था।
- अरुण सिंह

Comments

Popular posts from this blog

प्यार एक अजीब सा एहसास है / Love is a strange feeling.

 प्यार एक अजीब सा एहसास है।  जिसको सब समझ नही सकते ।  केवल उसी को समझ में आता है जिसको प्यार होता है ।  कोई इस एहसास को बता भी नही सकता ।  इसको केवल महसूस किया जा सकता है ।  यह आपके जीवन में कई बदलाव ला सकता है।

छुट्टियों का समय \ Holiday time

“पूरे हफ़्ते की स्कूल की छुट्टी हुई थी, ४ दिन घर बैठे - बैठे बीत गए, इससे अच्छा कहीं घूम ही आते है? क्या कहती हो?”  बग़ल के सोफ़े में घुसे अपनी प्यारी पत्नी सुनैना से कुशल बोलते हुए किचन की तरफ़ चलता गया।  सुनते ही सुनैना भी ख़ुशी में झूमती हुई बोली  “ हाँ! बिल्कुल, सही कहते हैं, मैं भी यही सोंच रही थी।घर बैठे-बैठे बिलकुल ही बोर हो गए हैं! टेलिविज़न पर एक ही वेब सिरीज़ ४ बार देख चुकी हूँ। अब पंचवि बार देखने का मन नहीं है मेरा! कहाँ चले? कोई आस पास की जगह देखते हैं ,१ दिन का घूमने का हो तो कल सुबह निकल चलते हैं, वही रात में रुक भी जाएँगे।”  कुशल ने सोचा कि ये तो बस इंतेज़ार ही कर रही थी, मेरे बोलते ही इसने सारा प्लान भी बना लिया!  बग़ल के कमरे में इनका प्यारा बेटा राहुल, विडीओ गेम खेल रहा था, सुनते ही बाहर आ गया और वह भी सोफ़े में बैठ गया जहां बाहर जाने का प्लान बन रहा था।  उनकी बात ध्यान से सुना और दोनो लोगों को हिदायत देते हुए बोला  “बिलकुल नहीं!, कहीं नहीं जाना है, मेरी छुट्टी हुई है, आप लोगों की नहीं हुई है!, मुझे पूरे हप्ते घर पर ही रहना है, मैं रो...

कुछ बातें

  ख़्यालों के समुद्र में डूबे रहने से अच्छा है, हमेशा नये किनारों की तलाश करते रहें। असली सत्य वह है जो हमें अपने आँखों से ही नहीं बल्कि मन से भी दिखायी दे। अगर कुछ सिख पाएँ तो सबसे पहले अपने अंतः मन को समझ पाएँ। मन की गहराइयों में उतरने पर ही, अपने खुद के बारे में समझा जा सकता है। खुद को समझने के लिए, सबसे पहले अपने आप का सबसे गहरा मित्र बनना पड़ता है। -अरुण सिंह