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समय चक्र

  जब मनुष्य जन्म लेता है तब उसके पास निर्वस्त्र शरीर और स्वच्छ दिमाग़ के सिवा कुछ नहीं होता। समय उसे मोह , माया , द्वेष , ईर्ष्या दे देती है जिसमें वह उलझा रहता है । एक के मिलने के बाद दूसरे को पाने लिए दौड़ता रहता है। ....... ...... ... - अरुण सिंह

जेठ की दोपहरी

                                                      *** जेठ की दोपहरी *** अरे सोमू भैया!!! बहुत सालों बाद गाँव आएँ! सब ठीक तो है? “तीन पहिया आटो से अपना सूट्केस ले कर गाँव से २ कोस दूर चौराहे पर उतर रहा था तभी पीछे से आवाज़ आयी” । सूट्केस सम्भालते हुए और चेहरे का पसीना पोछते हुए, पीछे मुड़कर के देखा तो जगु मोटरसाइकल से उतर कर सोमेश की तरफ़ आ रहा था। “गाँव में सोमेश को सभी लोग सोमू कहके बुलाते थे” अरे जगु तुम! हाँ, बहुत सालों बाद गाँव आया हूँ, स्कूल की गर्मी की छुट्टी चल रही है तो सोचा गाँव घूम आऊँ। तुम बताओ! कैसे हो भई? बहुत सालों बाद तुम्हें देखा है। “जगु २ साल सोमेश से छोटा था, गाँव में उसके घर के बग़ल में ही जगु का घर है, सोमेश जब साइकल से स्कूल जाता था तो कभी-कभी इसको भी स्कूल जाने के लिए पीछे कैरीअर पे बैठा लेटा था।” हम लोग ठीक हैं भैया, बस बाबूजी को बुख़ार है २ दिन से तो दवा की दुकान जा रहा हूँ दवा लाने। आप आधा घंटा रुकिए यहीं, मैं आता हूँ तो मेरे साथ ही मोटरसाइकल पर गाँव चले चलिएगा। “जगु भी अपने सर से गमछा खोल कर पसीना पोछते हुए एक साँस म

ॐ जय जगदीश हरे | Om Jai Jagdish Hare Flute , Part 1I Om Jai Jagdish

असली ज़रूरत मंद

....................................................................................................... "भाई साहेब ! ओ भाई साहेब ! सुनिए तो! बच्चा कई दिनों से भूखा है । कुछ मदद कर दीजिए ।" आवाज़ अनसुनी कर रोहित चला जा रहा था । तभी उसके मन में पता नहीं क्या आया कि पीछे मुड़ के उस औरत के पास आ गया जो उसे आवाज़ लगा रही थी । यही कोई लगभग 45 वर्ष की आयु की औरत थी। रोहित को पास आते देख, महिला दयनीय चेहरा बना कर गिड़गिड़ाते हुए बोलने लगी। "साहेब! पैसे नहीं तो राशन दिला दीजिए या 5 किलो आटा ही दिला दीजिए, बच्चे भूखे हैं " । "मैं आपको इसी जगह पे सालों से देखता हूँ। आपकी सेहत भी ठीक ठाक दिखती है, फिर आप ये रोज़ इतना भीख माँग कर करती क्या हैं ? मैंने भी बहुत बार आपको मदद की है । मुझे याद है।” रोहित उस औरत को प्यार से समझाने के लहजे से बात करने लगा । "अरे नहीं साहेब मेरा बच्चा भूखा है, पैसे नहीं तो खाने का सामान दिला दीजिए। ” औरत एक बात की रट लगाए पड़ी थी। “अच्छा तो पहले आप लोग पैसे माँगते थे, और लोग ज़रा समझदार हो गए हैं तो आप लोग बोलते हो कि 5 किलो का आटा दिला दीजि

क़िस्सा लॉकडाउन का

"आयिए कौशिक भाई साहेब !!! क्या चाहिए?” किराने की दुकान वाले ने प्यार से पूछा । कुछ ख़ास नहीं भैया, बस कुछ राशन का सामान चाहिए। ये लीजिए सामान की लिस्ट है। सुंदर!! ये कौशिक साहेब का सामान निकाल दो बेटा !!! सुंदर जो किराने की दुकान पर काम करता था झट से सामान की लिस्ट कौशिक के हाथों से ले लीया। और सरसरी निगाहों से लिस्ट को पढ़ता गया। भैया आप अपना झोला तो लाए होंगे ना ? आज कल ये प्लास्टिक का बैग बंद हो गया है !!! नया नियम आया है कि अपने झोले में ही सामान ले जाएँ। और अब कोरोना बीमारी भी तो धीरे धीरे फैल रही है!!! कौशिक मन ही मन हंसते हुए बोला "हाँ भई लाया हूँ झोला, लो इसमें सामान निकाल दो”। फिर सुंदर सामान निकाल कर झोले में रखता गया । दुकान मालिक ने कौशिक से ऐसे ही मन हल्का करने के लिए बोले "ये क़ोरोना वाइरस तो अब फैलता ही जा रहा है कौशिक भाई साहेब । सबको बाहर निकलने पर मास्क पहनें रहना चाहिए और एक दूसरे से दूरी बना के रखना चाहिए। बहुत देशों में तो कर्फ्यू लग गया है, अब अपने देश में देखिए क्या होता है ।" हाँ ये तो है भाई साहेब! "कौशिक भी उनके हाँ में हाँ मिला दिया ”

गरीब का कर्फ्यू

“अरे साहेब!!! इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हैं?” सोसायटी के गार्ड की आवाज़ ने रोहित के तेज़ी से बढ़ते पैरों में ब्रेक लगाया। “कुछ नहीं भैया! कल से पूरे देश में  कर्फ्यू  लगा है ना! तो कुछ खाने का समान लाने यहीं गेट के पास वाले किराना की दुकान तक जा रहा हूँ।” रोहित जवाब देते हुए आगे बढ़ने लगा। तब तक गार्ड की आवाज़ ने फिर से रोक लिया। “हाँ साहेब सही कह रहे हैं, जो ज़रूरी सामान चाहिए लेते आयिए। पता नहीं कहाँ से ये महामारी आ गयी! मैंने तो अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसी बीमारी ना देखी! जिसका कोई दवा ही नहीं है। बचना ही दवा है साहेब! ”   फिर रोहित भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा “हाँ ये तो है भैया!, आप लोग भी बचाव कीजिए ”।   “अरे साहेब अब हम कहाँ से बचेंगे! नौकरी तो करनी है ना!!! नहीं तो खाएँगे क्या? पता नहीं मेरी घरवाली ने कुछ खाने का सामान ख़रीदा भी है या नहीं! उसको तो पता भी नहीं होगा, घर पर कोई टेलिविज़न भी तो नहीं है कि उसे पता चले!   मोबाइल भी नहीं है कि फ़ोन कर के बता सकूँ!   पिछले महीने सोंचा था कि एक फ़ोन ख़रीद दूँ लेकिन   मेरी बेटी के छोटे लड़के के लिए कपड़े ख़रीद