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डिजिटल युग

"एक ब्रेड ही सेंक कर दे दो!! खाली चाय मजा नहीं आ रहा" कुशल शर्मा ने अपने पत्नी सरिता से बड़े प्यार से बोले। सरिता किचेन में जल्दी जल्दी बच्चे को स्कूल जाने के लिए टिफिन पैक कर रही थी। "वाह जी वाह!! मजे की चिंता बहुत है आपको!! आज इंटरव्यू देने के लिए नहीं जाना है क्या? कबतक बिना नौकरी के घर बैठे रहोगे? ये कल रात की रोटी बची है! इसे ही खा लेते चाय के साथ! ये वैसे भी खराब होने वाली है" सरिता ने रोटी बढ़ा दी शर्मा जी के तरफ। शर्मा जी भी चाय में रोटी डुबो कर खाने लगे और  एक हाथ से दो दिन पुराना न्यूज़ पेपर के रोजगार समाचार वाले पेज पर रिक्तियां देखने में मशगूल हो गए। " अरे अरे!! एक जॉब का इंटरव्यू मिल गया। आज आखिरी दिन है। मैं जा रहा हूँ इंटरव्यू देने!!" शर्मा जी ने चिल्लाते हुए सरिता को बताया और बच्चों की तरह कूदने लगे। जल्दी से कपड़े पहन कर और जूते में हल्का फुल्का ब्रश मार कर दौड़ के सड़क पर आ गए । रास्ते में याद आया कि पेन तो घर पर छूट गया। अब पेन खरीदने के लिए रुकें तो कहीं इंटरव्यू के लिए देरी ना हो जाये। अभी शर्मा जी असमंजस में थे तब तक ऑटो ड्राइवर ने

नियम बहुत बोरिंग होते हैं

रोहित सोफ़े में धँस कर न्यूज़ डिबेट का ९ बजे का प्रोग्राम देख रहा था। दो पार्टी  के प्रवतका के बीच नोक झोंक चल रही थी। डिबेट अपने ज़ोरों पर चल रहा था, रोहित का पूरा ध्यान डिबेट में था। उसे ध्यान ही नहीं रहा कब रीमा ने चाय का प्याला टेबल पर रख दिया। टेबल पर पानी का ग्लास पहले से रखा था। ग़लती से पानी समझ कर बिना देखे चाय का प्याला उठा कर पी गया । अहं उह्ह मुँह जल गया!!!! चाय के कप को मुँह से हटाते हुए और ग़ुस्सा रीमा के उपर  निकालते हुए ” चाय कब रख दी!! बता तो देती” देखो मेरा पूरा मुँह जल गया। रीमा ने भी जवाब दिया ” बताया तो था!! जब अपने न्यूज़ से बाहर निकलोगे तब तो कुछ दिखायी सुनायी देगा ” “ऐसे मगन हो कर न्यूज़ देखते हो जैसे देश का सारा इकॉनमी तुम्हें ही सही करना है” और सुनो ये राजू को देखो दूसरी क्लास में चला गया लेकिन सही से जोड़ घटाना भी नहीं कर पाता। और मुसीबत ना आए भाँपते हुए “अच्छा प्लीज़ मुझसे ग़लती हो गयी मेरा मुँह चाय से नहीं पानी से जल गया था! ” रोहित अपनी हार मान के फिर से सोफ़े में घुस गया। न्यूज़ डिबेट का प्रोग्राम अब खत्म हो गया था। रोहित के कानो में रीमा की आवाज़

डिज़ाइनर शीशा

सुमन अपने ऑफिस के कमरे में घुसते ही आश्चर्य चकित रह गया। बॉलकोनी का दरवाजा जो कि शीशे का था कुछ डिज़ाइनर लग रहा था। इतना सुंदर डिज़ाइन!! जैसे लग रहा था!! ढेर सारी बारिश की बूंदों को एक साथ मीला कर उनको एक फ्रेम में कैद कर दिया गया हो और सारे बूंद एक दूसरे से चिपक कर जुड़े हुए हैं। ध्यांन से दरवाजे में देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे नीले समुन्दर के पानी में किसी ने कंकड़ फेंका हो!! और जैसे ही कंकड़ पानी मे गिरे उसी समय समुन्दर का पानी सैकड़ो बूंद बनकर हवा में छलांग लगा दिए हों। उसी समय किसी कैमरामैन ने उन सारे बूंद!! जो हवा में थे उनका पिक्चर खींच लिया हो और उस पिक्चर को दरवाजे पर चिपका दिया हो। सुमन अभी इसी ख्यालों में खोया था तबतक ऑफीस में काम करने वाले रमेश ने ध्यान भंग किया। साहेब चाय कहाँ रखूं? "टेबल पर रख दो" आदेश के लहजे में सुमन ने बोला। फिर रमेश ने डरते हुए चाय टेबल पर रखा और गिड़गिड़ाते हुए सुमन से बोला" साहब मुझे माफ़ कर दीजिए, मैं सफाई कर रहा था तो गलती से शीशे के दरवाजे को झटके से बंद किया और शीशे के दरवाजे में क्रैक आ गया। ??? !! सुमन कुछ देर तो समझ नहीं पा

पारदर्शी दीवार

"धीमी धीमी बारिश हो रही थी। मैं कमरे में खिड़की के पास बैठ कर चाय पीते हुए बारिश और ठंडी हवा का आनंद ले रहा था।" बहुत देर से कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। फिर खिड़की पर लगे पारदर्शी शिशे के थोड़ा और नजदीक गया। बाहर बारिश की बूंदे साफ दिखाई दे रहीं थीं। अचानक शीशे के उस पार एक छोटी सी छिपकली की बच्ची पर नज़र पड़ी। वह बार बार शीशे से टकरा रही थी। वह बाहर बारिश से बचने के लिए अंदर आना चाह रही थी! लेकिन अंदर नही आ पा रही थी। फिर थोड़ा पीछे जा कर दौड़ कर फिर शीशे पर अपना मुँह दे मारा!!..अंदर आने की कोशिश बहुत देर से कर रही थी। जिसकी वजह से उसका मुँह चोटिल हो गया था। मुझे ये समझने में देर न लगी कि वह ऐसे क्यों शीशे पर हर बार  टकरा रही थी!... शायद उसको पारदर्शी शीशे से लग रहा था कि रास्ते में कुछ रुकावट नहीं है और वह आसानी से कमरे के अंदर आ सकती है। लेकिन वह शीशे की दीवार को समझ नहीं पा रही थी। फिर कुछ देर बाद जब अंदर आने में सफलता नहीं मिली और चोटिल भी हो गयी तो थक हार कर खिड़की के तरफ देखने लगी । शायद उसे पता चल गया कि जो दिख रहा है वह है नहीं। कुछ तो रास्ते मे रुकावट है। जिस

वृंदावन के बंदर

लगभग 2:30 घंटे की ड्राइविंग कर के गाज़ियाबाद से वृंदावन पहुंचते ही सबसे बड़ी समस्या "पार्किंग" ढूढ़ने में सफलता मिली। बाँके बिहारी जी के मंदिर के पास ही पार्किंग की जगह मिल गयी । पार्किंग में कार खड़ी करके बाहर निकलने के लिए जैसे ही कार का दरवाजा खोला, वैसे ही तेज आवाज ने सावधान किया !! "भैयाजी जी आप लोग अपना और बेटे का चश्मा कार में ही रख दीजिए" क्यों भाई ? कौतुहल बस पूछ बैठा! ... अभी यह सवाल पूछ ही रहा था तब तक मेरे बेटे के तरफ अचानक एक छोटा सा.. नटखट सा ब ंदर दौड़ा। मैने झट से बेटे को संभाला और बंदर वहां से चला गया। तब समझ मे आया कि बंदर बेटे का चश्मा झपटने आया था। फिर मैंने यह सबकुछ समझने में एक पल की भी देरी नही की और अपना और अपने बेटे का चश्मा झट से उतार कर कार में रख दिया। फिर हम लोग सावधानी बरतते हुए मंदिर के तरफ चलने लगे। मेरे बेटे ने शिकायत के लहजे में रास्ते भर पूछता रहा " पापा!!बंदर मेरा चश्मा क्यों छीन रहा था??.." मेरे पास कोई जबाब नहीं था! फिर हम बाँके बिहारी जी के दर्शन करके वापस आने लगे। मेरे बेटे को शायद दर्शन भी ठीक से नही हो पाय

दिखावे की ज़िन्दगी

हैलो!! ..हैलो.."पापा आवाज सुनाई नहीं दे रही है!! मैं कल फ़ोन करूँगा। मैं अभी ऑफिस की एक पार्टी में हूँ।" फिर फ़ोन कट गया।... शर्मा जी ने बहुत मेहनत कर के कुछ पैसे बचाये थे। अपने एकलौते बेटे को विदेश लंदन पढ़ने के लिए भेजा। उसके लिए बहुत सारा पैसा लोन लिया । बेटे को लंदन पढ़ाने से शर्मा जी की अपनी कॉलोनी में इज्जत बढ़ गयी। बस क्या था अब बेटे को लंदन में रहने के लिए भी कुछ लोन लेना पड़ा। अब एक पैर आगे बढ़ा दिया था तो पीछे भी नहीं आ सकते। आखिर समाज मे इज्ज़त ही क्या रह जाएगी।अब सरकारी नौकरी से घर चल जाये वही बहुत है। ये सोच कर रह जाते कि बेटा पढ़ के नौकरी करेगा तो लोन चुका देगा। उधर बेटे ने भी नौकरी लगते ही घर खरीद लिया। उसको भी समय के साथ चलना था और उसका अपना भी एक समाज था। आखिर उसके साथ काम करने वाले क्या सोचेंगे कि अभी भी किराये के कमरे में रहता है।उसके लिए उसे भी लोन लेना पड़ा। अब बेटा भी क्या करें!!, अपना लोन चुकाए अथवा पापा का!!... रचनाकार: अरुण कुमार सिंह

नई सुबह

रीमा! सुन रही हो? "देखो कौन आया है दरवाजे पर?" दरवाजा खोल देना! रीमा अपने 12वीं बोर्ड परीक्षा कि पढ़ाई मे ध्यान लगायी थी। पिता जी के तेज अवाज से ध्यान भंग हो गया। "जी पिता जी" बोल के दरवाजा खोला। ..... रचना दीदी!!! और मौसी!!! मारे खुशी से उछलने लगी। पिता जी और मां दोनो दरवाजे पर आ गए ..... और खुशी से सब घर के अन्दर चले गए। फिर मै मन ही मन यही सोंच रही थी.... कि रचना दीदी मुझसे 3 साल ही तो बड़ी हैं! लेकिन पिछले साल उनकी शादी हुई और आज कितना गंभीर हो गई हैं!! .. .चेहरे से उम्र का तेज गायब हो गया था। उनका मन बहुत था पढ़ाई करने का ... लेकिन हमारे 10 गांव के बीच केवल एक ही स्कूल है। ...और वह भी केवल 12वीं तक है। आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ता था। और यह अधिकार लड़कियों को नहीं मिलता था। पिता जी की आवाज से ध्यान भंग हुआ। ... रीमा!!... देखो! "रचना" कितना समझदार हो गयी है!!! अब तुम भी 12वीं परीक्षा दे कर कुछ घर के काम सिख लो ....और कुछ कढ़ाई बुनाई सिख लो !!... अखिर शादी के बाद यहि काम आएगा!! ..नहीं पिता जी मुझे बीएससी की पढ़ाई करनी है, मुझे अभी शादी नह